अगर पार्टियां पंथ को देश से ऊपर रखती हैं तो हमारी स्वतंत्रता दूसरी बार खतरे में पड़ जाएगी: धनखड़

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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को संविधान निर्माता बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर को याद करते हुए कहा कि अगर पार्टियां पंथ को देश से ऊपर रखती हैं तो हमारी स्वतंत्रता दूसरी बार खतरे में पड़ जाएगी। संविधान को अंगीकार किए जाने की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर साल भर चलने वाले समारोहों की शुरुआत के लिए पुराने संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने आगाह किया कि रणनीति के तहत व्यवधान पैदा करना लोकतंत्र के लिए खतरा है।

धनखड़ ने कहा, ‘‘यह समय रचनात्मक संवाद, बहस और सार्थक चर्चा के माध्यम से हमारे लोकतांत्रिक मंदिरों की पवित्रता को बहाल करने का समय है ताकि हमारे लोगों की प्रभावी ढंग से सेवा की जा सके।’’ इस बात का उल्लेख करते हुए कि संविधान ने निपुणता से लोकतंत्र के तीन स्तंभों — विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका– को स्थापित किया और प्रत्येक की एक परिभाषित भूमिका है, धनखड़ ने कहा, ‘‘लोकतंत्र का सबसे अच्छा पोषण तब होता है जब उसके संवैधानिक संस्थान अपने-अपने अधिकार क्षेत्रों का पालन करते हुए समन्वय, तालमेल और एकजुटता से काम करें।’’

संविधान दिवस समारोह पर उपराष्ट्रपति का संबोधन

उन्होंने जोर देकर कहा कि राज्य के इन अंगों के कामकाज में, क्षेत्र विशिष्टता भारत को समृद्धि और समानता की अभूतपूर्व ऊंचाइयों की ओर ले जाने में इष्टतम योगदान देने का सबसे अच्छा साधन है। कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, राज्यसभा में सदन के नेता जे पी नड्डा, विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे (राज्यसभा) और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रीजीजू मंच पर मौजूद थे।

इस अवसर पर भारत के संविधान को अपनाने की 75वीं वर्षगांठ को समर्पित एक स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी किया गया। साथ ही ‘भारत के संविधान का निर्माण: एक झलक’ और ‘भारत के संविधान का निर्माण और इसकी गौरवशाली यात्रा’ शीर्षक वाली पुस्तकों का विमोचन किया गया। राष्ट्रपति ने संविधान के संस्कृत और मैथिली अनुवादों का अनावरण किया। यह समारोह ‘हमारा संविधान, हमारा स्वाभिमान’ अभियान का हिस्सा है। इसका उद्देश्य संविधान में निहित मूल मूल्यों को दोहराते हुए संविधान के निर्माताओं के योगदान का सम्मान करना है।

 

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