उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को उस व्यक्ति की मौत की सजा को कम करके 20 साल जेल की सजा में तब्दील कर दिया जिसने परिवार की इच्छा के विरुद्ध अंतरजातीय विवाह करने वाली अपनी गर्भवती बेटी की हत्या कर दी थी।
न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने अपनी बेटी के गुनहगार महाराष्ट्र के नासिक जिले के निवासी एकनाथ किसान कुंभारकर की दोषसिद्धि को बरकरार रखा लेकिन उसकी मौत की सजा को खारिज कर दिया।
अधिनस्थ अदालत द्वारा दर्ज किए गए दोषसिद्धि के आदेश जिसकी बंबई उच्च न्यायालय के छह अगस्त, 2019 के आदेश में पुष्टि की गई थी।
पीठ ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत अधिनस्थ अदालतों द्वारा दी गई मौत की सजा को बिना किसी छूट के 20 साल के कठोर कारावास में तब्दील किया जाता है।
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि कुंभारकर को तब तक छूट के लिए कोई अभ्यावेदन देने का अधिकार नहीं होगा, जब तक कि वह वास्तविक कठोर कारावास के 20 वर्ष पूरे नहीं कर लेता।
दोषी की रिपोर्ट देखने के बाद पीठ ने कहा, ‘‘हमें लगता है कि वर्तमान मामला ‘दुर्लभतम मामलों’ की श्रेणी में नहीं आता है, जिसमें यह माना जा सकता है कि मृत्युदंड देना ही एकमात्र विकल्प है। हमारा विचार है कि वर्तमान मामला मध्य मार्ग की श्रेणी में आएगा, जैसा कि इस अदालत ने विभिन्न निर्णयों में माना है।’’
अभियोजन पक्ष के अनुसार, कुंभारकर ने 28 जून 2013 को अपनी गर्भवती बेटी प्रमिला की हत्या कर दी थी, क्योंकि उसने पिता की इच्छा के विरुद्ध दूसरी जाति के व्यक्ति से शादी कर ली थी।