उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि उसने एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी को अदालत को ‘गलत’ जानकारी देने के लिए ‘बलि का बकरा’ बनाया है तथा आदर्श आचार संहिता लागू होने के दौरान दोषियों की सजा माफी से संबंधित फाइलों पर कार्रवाई न करने के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय पर दोषारोपण किया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य सरकार के अधिकारियों ने जेल अधिकारियों का वह ईमेल नहीं खोला जिसमें उन्हें अदालत के आदेश के बारे में बताया गया था कि लोकसभा चुनाव के कारण छह जून तक लागू आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) सजा माफी संबंधी फाइलों के प्रसंस्करण में आड़े नहीं आएगी।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि वह सच्चाई का पता लगाने के लिए मामले की गहराई से जांच करेगी। पीठ ने राज्य सरकार को माफी से संबंधित फाइलों पर कार्रवाई करने के अपने 13 मई के आदेश के बाद की घटनाओं का सही क्रम बताते हुए अपनी स्थिति स्पष्ट करने का एक आखिरी मौका दिया।
पीठ ने कहा, “हम राज्य के मुख्य सचिव को 24 सितंबर तक इस अदालत में एक व्यक्तिगत हलफनामा दायर कर पूरे प्रकरण और राज्य तथा उसके अधिकारियों के आचरण के बारे में स्पष्टीकरण देने का निर्देश देते हैं।”
शीर्ष अदालत ने भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के वरिष्ठ अधिकारी राजेश कुमार सिंह को भी कारण बताओ नोटिस जारी किया, जो हाल तक उत्तर प्रदेश के जेल प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव थे, जिन्हें राज्य सरकार ने अदालत को “गुमराह” करने के लिए सात सितंबर को हटा दिया था।
पीठ ने सिंह को नोटिस जारी करते हुए पूछा कि उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए। न्यायालय ने कहा, “प्रथम दृष्टया हमें ऐसा प्रतीत होता है कि हलफनामे में उनके (आईएएस अधिकारी) द्वारा लिया गया रुख 12 अगस्त को उनके द्वारा दिए गए बयानों के विपरीत है, जब वे डिजिटल माध्यम से अदालत के समक्ष पेश हुए थे।”
पीठ ने कहा, “उनके कारण किसी की स्वतंत्रता दांव पर लग गई।” साथ ही पीठ ने निर्देश दिया कि अदालत के समक्ष विरोधाभासी बयान देने के लिए झूठी गवाही की कार्यवाही शुरू करने की खातिर आईएएस अधिकारी के खिलाफ नोटिस भी जारी किया जाए।
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने कहा कि आईएएस अधिकारी को हाल ही में सभी कर्तव्यों से मुक्त कर दिया गया है और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की गई है। पीठ ने राज्य सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद से कहा, “प्रथम दृष्टया, हम पाते हैं कि उन्हें राज्य सरकार द्वारा बलि का बकरा बनाया जा रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि एक अनुभाग अधिकारी ने छह जून तक जेल अधिकारियों से हमारे आदेशों की सूचना देने वाले ईमेल को नहीं खोला, जब आदर्श आचार संहिता समाप्त हो गई। इसका मतलब यह है कि तब तक फाइलें एक इंच भी आगे नहीं बढ़ीं।”
न्यायालय ने कहा, “समूचा राज्य तंत्र सो रहा था…जो उसके आदेशों की स्पष्ट अवहेलना है।”