केरल उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को दो विधायकों सहित उन तीन कांग्रेस नेताओं के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी, जिन पर 2015 में विधानसभा में हंगामे के दौरान वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) की दो तत्कालीन विधायकों को बाधित करने और उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाने का आरोप था।
विधानसभा में 13 मार्च, 2015 को तब व्यवधान हुआ था जब एलडीएफ विधायकों ने राज्य के तत्कालीन वित्त मंत्री के एम मणि को बजट पेश करने से रोकने की कोशिश की थी तथा उनके खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर उनके इस्तीफे की मांग की थी।
तब तत्कालीन कांग्रेस विधायकों के शिवदासन नायर, डोमिनिक प्रेजेंटेशन और एम ए वहीद पर एलडीएफ विधायकों के के लतिका और जमीला प्रकाशम ने आरोप लगाया था कि जब वे मणि के बजट पेश करने का विरोध कर रहे थे, तो उन्होंने दोनों विधायकों को बाधित किया और उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाने का प्रयास किया।
न्यायमूर्ति पी कुन्हिकृष्णन ने इस आधार पर तीन कांग्रेस विधायकों के खिलाफ मामले को रद्द कर दिया कि शिकायतें और संज्ञान-पूर्व चरण में दर्ज बयान ‘‘भादंसं की धाराएं 341 (गलत तरीके से बाधित करना) या 354 (महिलाओं का लज्जा भंग करना) के तहत अपराध के दायरे में नहीं आएंगे।
मामलों को रद्द करते हुए उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि दोनों धाराओं के तहत अपराधों का संज्ञान लेने वाला मजिस्ट्रेट अदालत का आदेश ‘‘अवैध’’ था।
अपने निर्णय का कारण बताते हुए, उच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य के वित्त मंत्री द्वारा बजट पेश करने के खिलाफ विधानसभा में लोकतांत्रिक तरीके से विरोध किया जा सकता है, लेकिन उन्हें ऐसा करने से नहीं रोका जा सकता क्योंकि यह उनका संवैधानिक कर्तव्य है।
उच्च न्यायालय ने कहा,‘‘ इस आशय का कोई कानून नहीं है कि भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत मामला दर्ज होने के बाद वित्त मंत्री विधानसभा में बजट पेश नहीं कर सकते। लेकिन मंत्री खुद तय कर सकते हैं कि उनकी अंतरात्मा उन्हें ऐसा करने की अनुमति देती है या नहीं।’’
न्यायमूर्ति कुन्हिकृष्णन ने कहा, ‘‘इसलिए, शिकायतकर्ता-एलडीएफ महिला नेताओं को उस दिशा में आगे बढ़ने का कोई अधिकार नहीं था, जिस दिशा से मंत्री आ रहे थे और उन्हें बजट पेश करने से रोक रहे थे और अगर कांग्रेस नेताओं ने उन्हें ऐसा करने से रोका, तो गलत तरीके से बाधित करने का अपराध नहीं बनता।’’