Bahraich Bhediya Attack: यूपी के बहराइच और उससे लगे आसपास के गांवों में आदमखोर भेड़ियों की दहशत है। वन विभाग अभी इनपर काबू नहीं पा सकी है और दूसरी तरफ सियार भी खूंखार हो गए हैं। उन्होंने भी हमले शुरू कर दिए हैं। पीलीभीत में सियारों के हमले से 7 लोग जख्मी हुए हैं। अब सोचने वाली बात ये है कि अचानक से ये हमले बढ़ कैसे गए? कहां से इतने भेड़िए और सियार यूपी के अलग-अलग जिलों में आ गए?
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट्स की मानें तो इन घटनाओं में सबसे बड़ी चूक वन विभाग से हुई। वन विभाग ने जंगल की डॉग फैमिली (भेड़िया, सियार, लोमड़ी आदि) को नजरअंदाज किया। जानकारों की मानें तो साल 1997 के बाद से वन विभाग ने जंगल की डॉग फैमिली के बारे में कोई स्टडी नहीं की। उनका पैटर्न, आबादी और अन्य पहलुओं पर सटीक स्टडी न होने से इनकी संख्या में काफी इजाफा हुआ, जिसके भयावह परिणाम अब दिख रहे हैं।
उस वक्त मारे गए थे 13 भेड़िए, फिर डॉग फैमिली से हट गया ध्यान
साल 1997 में जब भेड़ियों का आतंक प्रतापगढ़ में फैला था, तब वन विभाग ने एक टीम बनाई थी। ये टीम भेड़ियों सहित पूरी डॉग फैमिली पर काम कर रही थी। उस समय प्रतापगढ़ में 13 भेड़िए मारे गए थे। कुछ को रेस्क्यू भी किया गया था।
उसी घटना के बाद वन विभाग लापरवाह हो गया। इसके बाद वन विभाग का पूरा फोकस कैट फैमिली (शेर, चीता, तेंदुआ, लकड़बग्गा), हाथी और गैंडों पर हो गया। डॉग फैमिली पर कोई स्टडी हुई नहीं। ऐसे में इनकी आबादी धीरे-धीरे बढ़ती रही। आसपास मांदें बनने लगीं, लेकिन कभी वन विभाग ने इसे न तो समाप्त करने की कोशिश की और न ही उन्हें वहां से हटाया गया।
इसी लापरवाही के चलते भेड़ियों ने बहराइच को किया रक्तरंजित
बहराइच में भेड़ियों का आतंक वन विभाग की इसी नजरअंदाजी का परिणाम माना जा रहा है। वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट्स के मुताबिक अगर एक जगह तकरीबन 100 भेड़िए होंगे तो ऐसी स्थितियां आनी तय हैं। अगर वन विभाग ने इनकी बढ़ती आबादी पर पहले ही ध्यान दिया होता तो शायद बहराइच में ऐसी स्थिति से बचा जा सकता था। इन्हें खदेड़ा जा सकता था या रेस्क्यू किया जा सकता था।
जहां बाघ होंगे वहां भेड़ियों की संख्या खुद बढ़ जाएगी
एक्सपर्ट्स के मुताबिक जहां-जहां बाघ या शेर की आबादी बढ़ेगी, उसके आसपास सियारों की जनसंख्या में भी इजाफा होगा। दरअसल, बाघों के शिकार का बचा हुआ हिस्सा सियार ही खाते हैं। ऐसे में जहां बाघों की आबादी बढ़ती है, वहां सियारों के लिए भोजन की उपलब्धता आसान हो जाती है। पीलीभीत और दुधवा के आसपास इनकी संख्या में इजाफा होगा ही। अब अगर इन्हें बाघों का बचा हुआ शिकार नहीं मिलता है तो ये इंसानों पर हमला करते हैं।
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