उच्चतम न्यायालय झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई करेगा, जिसमें उन्होंने कोयला घोटाला मामले में अपनी दोषसिद्धि पर रोक का अनुरोध किया है, ताकि वह आगामी राज्य विधानसभा चुनाव लड़ सकें। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने बृहस्पतिवार को कहा कि न्यायाधीश मामले की फाइल पर गौर नहीं कर पाए हैं, क्योंकि वे उन्हें देरी से भेजी गई थीं, इसलिए मामले पर शुक्रवार को सुनवाई होगी।
पीठ ने इस मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता आर एस चीमा से कहा कि वह न्यायालय के पूर्व के फैसले को देखें, जिसमें कहा गया था कि सजा के निलंबन का दायरा जमानत के मामलों में निर्धारित दायरे से अलग है। चीमा ने उच्चतम न्यायालय के पूर्व के फैसले पर गौर करने पर सहमति जताई। दिल्ली उच्च न्यायालय ने दोषसिद्धि पर रोक के अनुरोध वाली कोड़ा की याचिका को 18 अक्टूबर को खारिज कर दिया। जांच एजेंसी सीबीआई ने कोड़ा की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि यह विचार योग्य नहीं है।
विधानसभा चुनाव के बीच कोड़ा की याचिका की सुनवाई
झारखंड की 81 सदस्यीय विधानसभा के लिए दो चरणों में 13 नवंबर और 20 नवंबर को मतदान होगा और मतगणना 23 नवंबर को होगी। निचली अदालत ने 13 दिसंबर, 2017 को कोड़ा, पूर्व कोयला सचिव एच सी गुप्ता, झारखंड के पूर्व मुख्य सचिव ए के बसु और कोड़ा के करीबी सहयोगी विजय जोशी को भ्रष्ट आचरण में लिप्त होने और राज्य के राजहरा उत्तर कोयला ब्लॉक को कोलकाता स्थित कंपनी विनी आयरन एंड स्टील उद्योग लिमिटेड (वीआईएसयूएल) को आवंटित करने में आपराधिक साजिश रचने के आरोप में तीन साल जेल की सजा सुनाई थी।
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) कार्यकाल के कोयला घोटाले में वीआईएसयूएल, कोड़ा और गुप्ता पर क्रमश: 50 लाख, 25 लाख और एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था। बसु पर भी एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था। दोषियों को उनकी अपील लंबित रहने के दौरान जमानत दे दी गई थी। कोड़ा ने झारखंड विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए दिसंबर 2017 के दोषसिद्धि आदेश को निलंबित करने का अनुरोध किया है।
क्या कहता है जनप्रतिनिधित्व अधिनियम?
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत, किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने और कम से कम दो साल की जेल की सजा पाने वाले व्यक्ति को तुरंत सांसद, विधायक या राज्य विधान परिषद (एमएलसी) के सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया जाता है। जेल से रिहा होने के बाद भी व्यक्ति छह साल तक अयोग्य बना रहता है।
सीबीआई ने दलील दी थी कि कोड़ा द्वारा दायर इसी तरह की अर्जी को मई 2020 में उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था और राहत के अनुरोध वाली उनकी नयी याचिका विचार योग्य नहीं है। मई 2020 में, उच्च न्यायालय ने कोड़ा की दोषसिद्धि पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि जब तक उन्हें बरी नहीं कर दिया जाता, तब तक उन्हें किसी भी सार्वजनिक पद के लिए चुनाव लड़ने की अनुमति देना उचित नहीं होगा।
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