कोयले पर विशेषज्ञ, कहा- भारत को इसका इस्तेमाल बंद करने के लिए कुछ और समय चाहिए होगा

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ब्रिटेन में अंतिम कोयला ऊर्जा संयंत्र आधिकारिक रूप से बंद होने के बाद नीतिगत मामलों के विशेषज्ञों ने कहा है कि भारत में अगले कुछ दशक तक कोयला, ऊर्जा स्रोतों का हिस्सा बना रहेगा क्योंकि यह अब भी महत्वपूर्ण ऊर्जा आवश्यकताओं वाला विकासशील देश है। दुनियाभर में 2040 तक कोयला मुक्त ऊर्जा व्यवस्था कायम करने की मांग के बीच ब्रिटेन ने सोमवार को अपना अंतिम कोयला संयंत्र बंद कर दिया और वह ऐसा करने वाला जी7 का पहला देश बन गया है।

वैश्विक ऊर्जा थिंक टैंक एंबर ने कहा कि…

साल 1882 में लंदन में दुनिया का पहला कोयला ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया गया था और 2012 तक ब्रिटेन में 39 प्रतिशत ऊर्जा का उत्पादन कोयले से होता था। वैश्विक ऊर्जा थिंक टैंक एंबर ने कहा कि ब्रिटेन में अंतिम कोयला संयंत्र बंद होने का अर्थ यह है कि एक तिहाई आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के देश कोयले के इस्तेमाल से मुक्त हो चुके हैं और तीन-चौथाई देशों में, ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के वैश्विक लक्ष्य के अनुरूप 2030 तक कोयला ऊर्जा का इस्तेमाल बंद हो जाएगा।

दुनिया में बिजली उत्पादन के लिए चीन के बाद कोयले के सबसे बड़े उपभोक्ता भारत में कोयला आधारित बिजली उत्पादन का हिस्सा 2019-20 में 71 प्रतिशत था जो 2023-24 में बढ़कर 75 प्रतिशत हो गया है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के अनुसार, 2023 में यूरोप और अमेरिका में कोयले की खपत में गिरावट आयी जबकि भारत में यह 8 प्रतिशत और चीन में 5 प्रतिशत बढ़ी।

भारत में बिजली उत्पादन के लिए कोयले का इस्तेमाल विकसित देशों की तुलना में कई दशक बाद शुरू हुआ। ब्रिटेन में पहला कोयला बिजली संयंत्र 1882 में खुला था, जबकि भारत ने अपना पहला बड़ा थर्मल ऊर्जा संयंत्र, हैदराबाद में हुसैन सागर थर्मल पावर स्टेशन, 1920 में स्थापित किया था। नीतिगत मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि भारत दीर्घकालिक ऊर्जा परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित कर रहा है और भारत में कोयला अगले कुछ दशकों तक ऊर्जा स्रोतों का हिस्सा बना रहेगा।

स्वतंत्र विश्लेषक सुनील दहिया ने कहा कि हालांकि कोयले का इस्तेमाल निकट भविष्य में बंद नहीं होगा, लेकिन भारत को कार्बन उत्सर्जन को रोकने के लिए उन्नत वायु प्रदूषण नियंत्रण प्रौद्योगिकियों को अपनाकर और अपनी क्षमता में सुधार करके इस क्षेत्र से होने वाले हानिकारक उत्सर्जन को कम करना होगा।

जलवायु कार्यकर्ता हरजीत सिंह के अनुसार, भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है, लेकिन इन स्रोतों की अनिश्चित प्रकृति और ‘स्केलेबल बैटरी’ भंडारण की कमी का मतलब है कि कोयला अब भी इसकी बिजली आपूर्ति और इस्पात व सीमेंट जैसे उद्योगों का आधार है।

उन्होंने कहा, ‘कोयला पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट करता है, लोगों को विस्थापित करता है, और पर्यावरणीय अन्याय को बढ़ाता है। भारत को तत्काल कोयले के इस्तेमाल से बचना चाहिए, और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को लोगों व पृथ्वी दोनों के हित में न्यायोचित परिवर्तन के लिए आवश्यक वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करनी चाहिए।’

पूर्ववर्ती योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने पिछले सप्ताह थिंक टैंक ‘सेंटर फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक प्रोग्रेस’ द्वारा आयोजित एक वेबिनार में कहा था कि भारत कोयले के उपयोग में तत्काल कटौती नहीं कर सकता और पश्चिमी देशों में केवल कोयले पर ध्यान केंद्रित करना तथा तेल व प्राकृतिक गैस की उपेक्षा करना पाखंड है।

उन्होंने कहा, “हालांकि, अगर हम 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं, तो हमें थर्मल पावर को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की जरूरत होगी। हमें दुनिया को यह संकेत देना चाहिए कि भारत का उत्सर्जन कुछ समय के लिए बढ़ेगा, फिर चरम पर पहुंचेगा और अंततः कम हो जाएगा। फिलहाल भारत के उत्सर्जन को कम करने की इच्छा के बारे में पश्चिमी देशों में बहुत सी गलतफहमियां हैं, जो सच नहीं है।” ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट’ की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि भारत फिलहाल कोयले पर निर्भर है, क्योंकि यह ऊर्जा का सबसे सस्ता स्रोत है।

उन्होंने कहा, ‘हमें भविष्य में कोयले के किसी और तरह इस्तेमाल के बारे में बात करनी चाहिए। हमें न केवल जलवायु परिवर्तन के लिए बल्कि स्थानीय वायु प्रदूषण को रोकने के लिए भी कोयले को स्वच्छ बनाना होगा। हमें अब भी निवेश करना होगा और यही मुद्दा है जहां दुनिया को बातचीत करने की जरूरत है।’

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