देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का गुरुवार (26 दिसंबर) की रात को निधन हो गया। वो दिल्ली के एम्स में भर्ती थे। मनमोहन सिंह ने 92 सालों में अपनी अंतिम सांस ली। अपने जीवन के 5 दशकों तक देश की सियासत में अहम योगदान दिया। वो दो बार देश के प्रधानमंत्री रहे। साल 1991 में वो देश के वित्त मंत्री बनाए गए थे। हम आपको उनके वित्त मंत्री बनाए जाने का एक रोचक किस्सा बताते हैं। कैसे मनमोहन सिंह सोकर उठे और उन्हें देश के केंद्रीय वित्त मंत्री का पद संभालने की जिम्मेदारी दे दी गई थी। वो खुद हैरान थे कि अचानक बिना किसी प्लान के ये कैसा ऑफर उन्हें दिया जा रहा है।
साल 1991 में जून का महीना था, ये वो दौर था जब देश घनघोर आर्थिक संकटों से गुजर रहा था। ऐसे गंभीर समय में देश को आर्थिक संकट से उबारने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने मनमोहन सिंह को चुना था। ये वो समय था जब देश के पास महज 89 करोड़ डॉलर की विदेश मुद्रा बची थी। इन पैसों से देश का खर्च महज दो सप्ताह तक ही चल सकता था। मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्रालय संभालते ही कई चुनौतीपूर्ण फैसलों के दम पर बाजी पलट दी और देश में उदारवाद ले आए।
8 पेज का गंभीर नोट पढ़कर चिंतित हो गए थे नरसिम्हा राव
साल 1991 में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठते ही पीवी नरसिम्हा राव को देश के आर्थिक हालात को लेकर 8 पेज का गंभीर नोट दिया गया। इस नोट में बताया गया था कि देश इस समय बुरे आर्थिक संकटों से गुजर रहा है। देश के पास महज एक पखवाड़े का ही विदेशी मुद्रा भंडार था। ऐसे में प्रधानमंत्री के सामने बड़ी चुनौती थी कि वो किन कामों को तवज्जो दें और किन कामों को नहीं। पीवी नरसिम्हा राव के कैबिनेट सचिव रमेश चंद्रा ने उन्हें इन बातों से अवगत कराते हुए वो गंभीर नोट थमाया था। जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री ने वित्त मंत्री के लिए मनमोहन सिंह का नाम फाइनल किया था।
मनमोहन सिंह सोकर उठे थे, आ गया था नरसिम्हा राव का संदेश
भारत में उस समय 80 के दशक में लिये गए शॉर्ट टर्म लोन की ब्याज दरें बढ़ गई थी, जिसकी वजह से देश की महंगाई दर बढ़ कर 16.7% तक पहुंच गई थीं। ऐसे कठिन हालातों से निपटने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को एक ऐसे वित्त मंत्री की जरूरत थी जो उन्हें इस आर्थिक संकट से बाहर निकाल सके। इसके लिए उन्होंने इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव रहे और अपने दोस्त पीसी अलेक्जेंडर से बातचीत की। अलेक्जेंडर नरसिम्हा राव को निराश नहीं किया और उन्हें मनमोहन सिंह के बारे में बताया और उनके कामों के बारे में भी बताया। इसके अगले दिन सुबह जैसे ही मनमोहन सिंह सोकर उठे उन्हें नरसिम्हा राव का संदेश आ चुका था। इस बारे में मनमोहन सिंह ने खुद भी एक इंटरव्यू में बताया था कि जब उन्हें अचानक से वित्त मंत्री बनने के लिए कहा गया था उन्होंने ये बात गंभीरता से नहीं ली थी और वहां बैठे सभी लोग हंसने लगे थे।
आत्मकथा में पीसी अलेक्जेंडर ने बताई कहानी
पीसी अलेक्जेंडर ने अपनी आत्मकथा ‘थ्रू द कोरीडोर्स ऑफ पावर एन इनसाइडर्स स्टोरी’ (Through the Corridors of Power: An Inside Story) में मनमोहन सिंह के सोकर उठते ही वित्त मंत्री बनने के ऑफर के बारे में बताया है। उन्होंने अपनी किताब में बताया, ’20 जून को मैंने मनमोहन सिंह के घर पर फोन किया। उनके नौकर ने फोन उठा कर बताया कि वो यूरोप गए हुए हैं और आज देर रात दिल्ली पहुंचेंगे। 21 जून की सुबह फिर मैंने सुबह साढ़े पांच बजे मनमोहन सिंह को फोन किया तो नौकर ने कहा कि साहब गहरी नींद में सो रहे हैं, उन्हें जगाया नहीं जा सकता। इसके बाद मैंने काफी जोर दिया तो नौकर ने मनमोहन सिंह को जगा दिया तब मेरी उनसे बात हुई। मैंने कहा आपसे मिलना बहुत जरूरी है थोड़ी देर में आपके घर आ रहा हूं। इसके बाद वो फिर सो गए। अलेक्जेंडर ने आगे बताया,’जब मैं मनमोहन सिंह के घर पहुंचा तो बहुत मुश्किल से उन्हें जगाया गया। अलेक्जेंडर ने उनको नरसिम्हा राव से हुई बातचीत के बारे में बताया और कहा कि वो उन्हें वित्त्त मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपना चाहते हैं। सिंह ने इस पर अलेक्जेंडर की राय जानना चाही, इस पर उन्होंने कहा “अगर मैं इसके खिलाफ होता तो इस समय पर आपसे मिलने नहीं आता।’
महंगाई, विरोध प्रदर्शन सहित आर्थिक हालातों से जूझ रहा था देश
जब मनमोहन सिंह ने साल 1991 में देश के वित्त मंत्री पद की कमान अपने हाथों में ली थी तब देश में काफी अस्थिरता का माहौल था। हालात इतने बुरे थे कि देश में विदेशी मुद्रा का भंडारण 1990 तक 3 अरब 11 करोड़ डॉलर रह गया था। इसके बाद जनवरी, 1991 आते – आते ये घटकर महज 89 करोड़ डॉलर बची इस मुद्रा से सिर्फ दो सप्ताह तक ही देश का खर्च चल सकता था। ये स्थितियां कई वजहों से खड़ी हुई थी। जैसे खाड़ी देशों में चल रहे युद्ध की वजह से तेल की कीमतें कई गुना बढ़ गईं थीं। कुवैत से हजारों नागरिकों को भारत वापस आना पड़ा था। देश में सियासी अस्थिरता का माहौल और मंडल आयोग की सिफारिशों को लेकर चल रहा विरोध प्रदर्शन इन सब वजहों से देश की आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई थी। ऐसे में इन आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री ने पीवी नरसिम्हा राव ने वित्त मंत्री के तौर पर डॉ. मनमोहन सिंह को चुना था।
मैं आपको काम की पूरी आजादी दूंगा, लेकिन… शपथ से पहले नरसिम्हा राव संदेश
पीवी नरसिम्हा राव ने मनमोहन सिंह की शपथ के पहले उन्हें कहा था कि ‘मैं आपको काम करने की पूरी आजादी दूंगा अगर हम सफल होते हैं तो हम सब मिलकर उसका क्रेडिट लेंगे, लेकिन अगर ये प्लान फ्लॉप हुआ तो आपको अपना पद छोड़कर जाना पड़ेगा।’ 24 जुलाई, 1991 वो तारीख थी जब वित्त मंत्री के तौर पर पहली बार मनमोहन सिंह ने अपना भाषण दिया था। इस दौरान उन्होंने कहा वह राजीव गांधी के मुस्कराते हुए चेहरे को मिस कर रहे हैं। वहीं इस दौरान के क्षणों के बारे में कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने अपनी किताब में जिक्र करते हुए लिखा, ‘मनमोहन सिंह ने पूरे भाषण के दौरान उस परिवार का बार-बार नाम लिया जिसकी नीतियों और विचारधारा को वो बजट के जरिये एक तरफ से पलट रहे थे।’ मनमोहन सिंह ने अपने बजट भाषण में खाद पर दी जाने वाली सब्सिडी को 40 प्रतिशत कम कर दिया था। इसके अलावा चीनी और एलपीजी सिलेंडर के दाम में इजाफा कर दिया।