समुद्रों के बढ़ते स्तर, क़र्ज़ और भूराजनैतिक तनावों से जूझ रहे प्रशान्त द्वीपीय देश, तभी अपने लिए खड़े हो सकते हैं, जब अन्तरराष्ट्रीय ऋणदाता, अहम विकास वित्त पोषण के लिए आसान शर्तों के लिए सहमत हों. साथ ही दुनिया के सबसे बड़े प्रदूषक देशों को, जलवायु आपदा का सामना करने के लिए, विशाल पैमाने पर वित्तीय योगदान करना होगा.