मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और गैर-सरकारी संगठनों ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय के उस फैसले की सराहना की, जो देश में बाल विवाह रोकथाम कानून के सख्त क्रियान्वयन को पुख्ता करता है। उन्होंने इसे इस सामाजिक कुप्रथा के खिलाफ लड़ाई में एक “महत्वपूर्ण मोड़” बताया। याचिकाकर्ताओं में से एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘सेवा’ की अलका साहू ने राहत जताते हुए कहा, ‘‘यह फैसला देश से बाल विवाह खत्म करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान के माध्यम से हम अपने बच्चों के लिए एक उज्ज्वल और सुरक्षित भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।’’
शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को कहा कि ‘बाल विवाह निषेध अधिनियम’ को किसी भी व्यक्तिगत कानून के तहत परंपराओं से रोका नहीं जा सकता और बाल विवाह जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन करता है। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने देश में बाल विवाह की रोकथाम पर कानून के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए दिशानिर्देश जारी किए। ‘बाल विवाह मुक्त भारत अभियान’ के संस्थापक भुवन रिभु ने इस फैसले को इस सामाजिक कुप्रथा के खिलाफ लड़ाई में एक “महत्वपूर्ण मोड़” बताया।
उन्होंने कहा, ‘‘यह ऐतिहासिक फैसला पूरे भारत के बच्चों के लिए एक जीत है। यह स्पष्ट संदेश देता है कि बाल विवाह बाल बलात्कार से कम नहीं है और इसे एकजुट प्रयासों तथा जवाबदेही के माध्यम से मिटाया जाना चाहिए।’’ न्यायालय ने ‘‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’’ मामले का हवाला दिया और बाल विवाह से निपटने के लिए यौन शिक्षा, बाल सशक्तीकरण और सामुदायिक भागीदारी को शामिल करते हुए एक समग्र रणनीति के महत्व पर जोर भी दिया। ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान 2030 तक बाल विवाह को समाप्त करने के लिए देश भर में काम कर रहे 200 से अधिक गैर- सरकारी संगठनों का गठबंधन है।
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