रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को कहा कि भारत ने विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का लगातार समर्थन किया है और क्षेत्रीय संवाद, स्थिरता और सामूहिक विकास को बढ़ावा देने में आसियान की केंद्रीयता पर जोर देते हुए हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया है।
उनके बयान क्षेत्र में चीन के बढ़ते सैन्य प्रभुत्व के बीच आए हैं। यहां हिंद-प्रशांत क्षेत्रीय वार्ता (आईपीआरडी) 2024 को संबोधित करते हुए सिंह ने रणनीतिक कारणों से महत्वपूर्ण संसाधनों पर एकाधिकार करने और उन्हें हथियार बनाने के कुछ प्रयासों पर चिंता व्यक्त की और इन प्रवृत्तियों को वैश्विक भलाई के प्रतिकूल बताया।
रक्षा मंत्री ने कहा कि अपने साझेदारों के साथ भारत का जुड़ाव इस समझ पर आधारित है कि सच्ची प्रगति केवल सामूहिक कार्रवाई और तालमेल के माध्यम से ही प्राप्त की जा सकती है और इन प्रयासों के कारण, अब देश को इस क्षेत्र में एक विश्वसनीय और पसंदीदा सुरक्षा साझेदार और पहली प्रतिक्रिया देने वाले के रूप में देखा जाता है।
रक्षा मंत्रालय ने उनके हवाले से एक विज्ञप्ति में कहा, ‘‘हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए भारत का दृष्टिकोण, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘सागर’ (क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास) के विचार पर आधारित है, क्योंकि हम ऐसी साझेदारी को बढ़ावा देने में विश्वास करते हैं, जो सतत विकास, आर्थिक विकास और आपसी सुरक्षा को प्राथमिकता देती हो।’’
उन्होंने राष्ट्रों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और सौहार्द को रेखांकित किया, और समुद्री संसाधनों की खोज और प्रबंधन में आगे बढ़ने के तरीके के रूप में प्रकृति के साथ सामंजस्य में मानव जाति के सहजीवी अस्तित्व के प्राचीन भारतीय दर्शन का उदाहरण दिया।
सिंह ने नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था, अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान और संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून समझौते में निहित सिद्धांतों के पालन के प्रति भारत के अटूट संकल्प को दोहराया और उन्हें विदेश नीति की आधारशिला बताया।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत ने विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का लगातार समर्थन किया है और क्षेत्रीय संवाद, स्थिरता और सामूहिक विकास को बढ़ावा देने में आसियान की केंद्रीयता पर जोर देते हुए हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया है।’’
रक्षा मंत्री ने पूरी दुनिया के साझा संसाधनों का क्षय ( ट्रेजेडी ऑफ द कॉमन्स) की अवधारणा पर भी बात की, जो एक ऐसा परिदृश्य है जहां व्यक्ति, अपने स्वार्थ में कार्य करते हुए, साझा संसाधनों को खत्म कर देते हैं, जिससे सामूहिक विनाश होता है।
उन्होंने इसे एक आसन्न खतरा बताया और कहा कि इससे तभी निपटा जा सकता है, जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय एक साथ आए और साझा वैश्विक संसाधनों (ग्लोबल कॉमन्स) के स्थायी प्रबंधन के लिए तेजी से काम करे।
नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के त्रिपाठी ने अपने संबोधन में भारत के आर्थिक विकास और सुरक्षा के लिए समुद्री क्षेत्रों, विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र की प्रासंगिकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत की समुद्री नीति ‘सागर’ में क्षेत्र में सभी के लिए सामूहिक समृद्धि और सुरक्षा की परिकल्पना की गई है। उन्होंने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के प्रमुख साधन के रूप में भागीदारी और सहयोग की बात कही। इस अवसर पर रक्षा मंत्री ने राष्ट्रीय समुद्री फाउंडेशन (एनएमएफ) द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘मैरीटाइम इंडिया: टेम्पोरल एंड स्पेशल कॉन्टिनम’ का विमोचन भी किया।