मुख्यमंत्री एक और दफ्तर में कुर्सियां दो; आतिशी के ‘खड़ाऊ CM’ प्लान की हवा निकालने के लिए BJP हमलावर

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Delhi News: आम आदमी पार्टी अरविंद केजरीवाल को भगवान राम के तौर पेश कर रही है। इसी तरह हैरान करने वाले घटनाक्रम में मुख्यमंत्री आतिशी ने दिल्ली में अपने कार्यालय के भीतर केजरीवाल के लिए कुर्सी खाली छोड़ दी है। आतिशी खुद को भरत कह रही हैं, मतलब कि वो केजरीवाल को भगवान राम के स्थान पर रख रही हैं। दिलचस्प ये है कि अब दिल्ली के दफ्तर में मुख्यमंत्री एक है, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सियां 2 हो गई हैं। फिलहाल आतिशी के ‘खड़ाऊ CM’ प्लान की हवा निकालने के लिए BJP हमलावर हो गई है।

आम आदमी पार्टी की नेता आतिशी, जिन्होंने सोमवार को दिल्ली के 8वें मुख्यमंत्री के तौर पर कार्यभार संभाला, एक अलग कुर्सी पर बैठीं। उन्होंने मुख्यमंत्री दफ्तर में सीएम के लिए पहले से रखी कुर्सी को खाली छोड़ दिया और उसी के ठीक बगल में खुद मुख्यमंत्री रहने के बावजूद अपनी अलग कुर्सी लगा दी। इसको लेकर बीजेपी सवाल उठा रही है।

आतिशी पर हमलावर हुई बीजेपी

भारतीय जनता पार्टी के सांसद मनोज तिवारी कहते हैं- ‘आतिशी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है और अगर वो खाली कुर्सी दिखाती हैं तो इससे कई सवाल उठते हैं। इसका मतलब है कि वो खुद को मुख्यमंत्री नहीं मानती हैं। अगर वो खुद मुख्यमंत्री होते हुए किसी और को मुख्यमंत्री मानती हैं तो ये सीएम के पद और संविधान का अनादर है। मैंने दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी को पत्र लिखा है। मेरा पत्र कौन पढ़ेगा?’

बीजेपी के एक और नेता कपिल मिश्रा इसे मोहिनी ड्रामा कंपनी करार दे रहे हैं। कपिल मिश्रा ‘X’ पर एक पोस्ट में लिखते हैं- ‘खर, दूषण और ताड़का खुद को राम लक्ष्मण और भरत होने का सर्टिफिकेट बांट रहे हैं। ये मोहिनी ड्रामा कंपनी की नौटंकी पर अब पर्दा गिराने का समय आ चुका है।’

CM दफ्तर में अलग कुर्सी पर आतिशी ने क्या कहा?

आतिशी कहती हैं कि मेरी भावनाएं भरत जैसी ही हैं, जब भगवान राम 14 साल के लिए वनवास गए थे और भरत को अयोध्या का शासन संभालना पड़ा था। वैसे ही दिल्ली सीएम आवास में केजरीवाल के लिए कुर्सी खाली रहेगी। आतिशी कहती हैं कि उम्मीद है लोग फरवरी में होने वाले चुनावों में केजरीवाल को वापस लाएंगे, तब तक उनकी कुर्सी सीएम कार्यालय में ही रहेगी।

अपने बयान में आतिशी कहती हैं, ‘आज मैंने दिल्ली के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाली है। आज मेरे मन में वो ही व्यथा है जो भरत के मन में थी जब उनके बड़े भाई भगवान श्रीराम 14 साल के वनवास पर गए थे और भरत जी को अयोध्या का शासन संभालना पड़ा था। जैसे भरत ने 14 साल भगवान श्रीराम की खड़ाऊं रखकर अयोध्या का शासन संभाला, वैसे ही मैं 4 महीने दिल्ली की सरकार चलाऊंगी।’

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