President Draupadi Murmu: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने औषधीय गुणों वाली जड़ी-बूटियों और पेड़-पौधों के बारे में ग्रामीणों और आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण पर जोर दिया है, जिससे ऐसे ज्ञान को विलुप्त होने से बचाया जा सके।
नवा रायपुर में पंडित दीनदयाल स्मृति स्वास्थ्य विज्ञान एवं आयुष विश्वविद्यालय के तीसरे दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि चिकित्सकों को अपने पेशे का कुछ कार्यकाल ग्रामीण क्षेत्रों को समर्पित करने पर विचार करना चाहिए। उन्होंने देश से मलेरिया, फाइलेरिया और तपेदिक जैसी संक्रामक बीमारियों को खत्म करने के लिए सरकारी प्रयासों पर भी प्रकाश डाला।
औषधीय पेड़-पौधों का खजाना- मुर्मू
राष्ट्रपति ने कहा,‘‘छत्तीसगढ़ में जड़ी-बूटियों और औषधीय पेड़-पौधों का खजाना है। ग्रामीणों और आदिवासी भाई-बहनों को औषधीय महत्व की जड़ी-बूटियों और पेड़-पौधों के बारे में जानकारी है। ऐसे ज्ञान का दस्तावेजीकरण उन्हें विलुप्त होने से बचाने के लिए जरूरी है। वनवासियों के ज्ञान के आधार पर शोध को बढ़ावा देकर ऐसी जानकारी का व्यापक स्तर पर उपयोग किया जा सकता है। इस कदम से रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।’’
उन्होंने कहा कि हाल ही में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की ‘लिविंग प्लैनेट’ रिपोर्ट 2024 में भारत के खान-पान को अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक टिकाऊ माना गया है। राष्ट्रपति ने कहा,‘‘यह हमारी पारंपरिक जीवन शैली के महत्व को रेखांकित करता है, जो हमें आयुर्वेद से मिलती है।’’
उन्होंने कहा कि मलेरिया, फाइलेरिया और तपेदिक जैसी संक्रामक बीमारियां अब भी देश से पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं तथा भारत सरकार इन बीमारियों को खत्म करने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रही है। राष्ट्रपति ने कहा कि आदिवासी समुदायों में सिकल सेल एनीमिया एक बड़ी समस्या है तथा भारत सरकार राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया मिशन के तहत इस पर काबू पाने की कोशिश कर रही है।
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