7 अक्टूबर के हमलों के बाद, बयाँ ना किए जा सकने वाला एक दर्दनाक साल

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युद्धग्रस्त ग़ाज़ा पट्टी के शरणार्थी शिविर में रह रहे एक फ़लस्तीनी व्यक्ति ने लड़ाई व तबाही के बीच, पिछले एक वर्ष के अपने अनुभव को साझा किया है. उनके शब्दों में यह एक ऐसी दर्दनाक व्यथा है, जिसे बयाँ नहीं किया जा सकता है.