दिल्ली का चुनाव भी, कोर्ट से मिली आधी अधूरी आजादी का तोड़ भी; केजरीवाल ने ऐलान से साध लिए दो निशाने

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Arvind Kejriwal: 8 जुलाई 2022 को दिल्ली के तत्कालीन मुख्य सचिव नरेश कुमार की रिपोर्ट से कथित शराब घोटाले का खुलासा हुआ था। दाग अरविंद केजरीवाल पर लगे, लेकिन वो मुख्यमंत्री बने रहे। 21 मार्च 2024 को गिरफ्तारी हो गई, पर सीएम की कुर्सी नहीं छोड़ी। कई महीने तिहाड़ जेल में काट लिए, फिर भी मुख्यमंत्री पद बने रहकर जेल से ही सरकार चलाई। 156 दिन बाद जमानत पर रिहा होकर लौटे अरविंद केजरीवाल ने अब मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की घोषणा की है।

इसमें कोई शक नहीं है कि अरविंद केजरीवाल ने भारतीय राजनीति में नई नजीर पेश की है। पहले जेल में रहकर सरकार चलाई और फिर ऐसा भी पहली बार हुआ है कि कोई निर्वाचित नेता जमानत पर जेल से बाहर आया हो। पूरे घटनाक्रम में बात मुख्यमंत्री की कुर्सी की रही, जिस पर बैठे रहकर वो जेल गए भी थे और वैसे ही लौटकर आ गए। हालांकि मुख्यमंत्री पद छोड़ने का ऐलान करके उन्होंने बहुत बड़ा दांव खेल दिया है। इसके मायने निकाले जा रहे हैं कि आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक ने एक तीर से दो बड़े निशाने साधे हैं।

अरविंद केजरीवाल का पहला दांव!

इस बात को दरकिनार नहीं किया जा सकता है कि अरविंद केजरीवाल को तथाकथित शराब घोटाले में जेल से लौटने के लिए शर्तों वाली जमानत मिली, जो एक तरीके से ‘आधी अधूरी आजादी’ कही जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल के सामने कई शर्तें रखीं और ये शर्तें भी ऐसी हैं कि वो मुख्यमंत्री भले रहते, लेकिन कोई कामकाज नहीं कर पाते। सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को मुख्यमंत्री दफ्तर में ना जाने और किसी भी कागज पर हस्ताक्षर ना करने को कहा हो, शायद ही ऐसी शर्तें पहले कभी किसी मुख्यमंत्री पर लगी होंगी। इस स्थिति में ये कहना भी गलत नहीं होगा कि सीएम पद पर बने रहने का कोई औचित्य ही नहीं था। मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद अरविंद केजरीवाल खुलकर खेल पाएंगे। दूसरा नेता नया मुख्यमंत्री बनेगा तो वो भी अपना काम खुलकर कर पाएगा। सरल शब्दों में कहें तो सुप्रीम कोर्ट की शर्तों के तोड़ के रूप में आम आदमी पार्टी नया मुख्यमंत्री चुनकर फैसले ले पाएगी।

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अरविंद केजरीवाल का दूसरा दांव!

अरविंद केजरीवाल के दूसरे दांव को सहानुभूति की लहर के सहारे दिल्ली के अगले विधानसभा चुनाव में वोट बटोरने की ताकत के रूप में देखा जा सकता है। दिल्ली में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं, लेकिन सहानुभूति बटोरने के लिए ही शायद अरविंद केजरीवाल समय से पहले दिल्ली में चुनाव की मांग कर रहे हैं, क्योंकि इस्तीफे वाले दांव से जनता के बीच सटीक संदेश जाएगा। याद हो, केजरीवाल पहले भी यही दांव को पहले आजमा भी चुके हैं, जब 2014 में 49 दिन में ही उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी थी। उसके बाद 2015 में चुनाव हुए तो नतीजे हैरान करने वाले आए थे। एक नई नवेली पार्टी के लीडर केजरीवाल ने देश की दो बड़ी पार्टियों कांग्रेस और बीजेपी को बुरी तरह मसल कर रख दिया था। कांग्रेस का पत्ता साफ था तो 70 में से बीजेपी 3 सीटें ही जीत पाई थी।

केजरीवाल की लहर 2020 के विधानसभा चुनाव में भी बरकरार रही, जब एक बार फिर कांग्रेस का खाता नहीं खुला था और बीजेपी महज 8 सीटें जीत पाई थी। बहुत बड़े बहुमत के साथ केजरीवाल ने सरकार बनाई थी। हालांकि इसी कार्यकाल में उन पर शराब घोटाले के आरोप लगे हैं। बहरहाल, भ्रष्टाचार के आरोपों को सहानुभूति की लहर में धोने की कोशिश के तौर पर केजरीवाल ने अपना काम कर दिया है।

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