अखिलेश राय
केंद्र सरकार ने मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया है। मैरिटल रेप को अपराध घोषित किए जाने की मांग करने वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए केंद्र सरकार की ओर से कहा गया है कि मैरिटल रेप को अपराध बनाने की जरुरत नहीं है। क्योंकि मौजूदा कानून में महिलाओं के लिए पर्याप्त प्रावधान मौजूद हैं।
केंद्र सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि भारत में शादी पारंपरिक दायित्वों का संस्था मानी जाती है और यह मसला कानूनी से ज्यादा सामाजिक है, जिसका समाज पर सीधा असर पड़ता है। इस मसले पर कोई भी फैसला सभी हितधारकों के उचित सलाह लिए बिना या सभी राज्यों के विचारों को ध्यान में रखे बिना नहीं लिया जा सकता है।
मैरिटल रैप को अपराध घोषित करना सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं- सुप्रीम कोर्ट
मामले पर शीर्ष अदालत ने कहा कि मैरिटल रैप को अपराध घोषित करना सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मौजूदा कानून का समर्थन किया जो पति और पत्नी के बीच शारीरिक संबंधों के लिए अपवाद बनाता है।
विवाह से महिला की सहमति समाप्त नहीं होती है – केंद्र सरकार
केंद्र सरकार की ओर से दायर हलफनामें में कहा गया है कि हालांकि विवाह से महिला की सहमति समाप्त नहीं होती है और इसके उल्लंघन के परिणामस्वरूप दंडात्मक परिणाम होने चाहिए। हालांकि, विवाह के भीतर इस तरह के उल्लंघन के परिणाम विवाह के बाहर के उल्लंघन से भिन्न होते हैं। हलफनामे में केन्द्र सरकार ने मैरिटल रेप को अपराध के दायरे मे लाने का तो विरोध किया है लेकिन साथ ही ये भी कहा है कि अगर कोई पत्नी की इच्छा के बिना जबरदस्ती संबंध बनाता है तो ऐसी सूरत मे उसे दंडित करने के लिए कानून मे पहले से ही प्रावधान है।
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