
Farmers Protest: सोमवार को किसान अपनी मांगों को लेकर भारी संख्या में दिल्ली की तरफ चल दिए, लेकिन दिल्ली पुलिस ने उन्हें चिल्ला बॉर्डर पर ही रोक दिया। इस कारण सुबह से ही नोएडा से दिल्ली जाने और दिल्ली से नोएडा आने वाले लोगों को भारी जाम का सामना करना पड़ा। किसानों के ‘दिल्ली चलो’ मार्च को रोकने के लिए दिल्ली-नोएडा सीमा पर लगाए गए बैरिकेड्स को पुलिस ने फिलहाल हटा लिया है।
किसानों को प्रशासन की तरफ से भरोसा मिलने के बाद सड़क मार्ग खोल दिया गया है। अब किसानों से बातचीत को लेकर केंद्र सरकार का भी बयान आया है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री चिराग पासवान ने कहा कि किसानों से बातचीत के लिए सरकार तैयार है। उन्होंने कहा कि सरकार ने हमेशा बातचीत का रास्ता खोला रखा है। हमारी सरकार किसानों की हर मांग को सुनने के लिए तैयार है।
‘पहले बातचीत होनी चाहिए’
चिराग पासवान ने कहा कि ‘सरकार पूरी तरीके से किसानों से बातचीत करने के लिए तैयार है लेकिन बार-बार इस तरीके से मार्च करना, पिछले बार भी जिन कानून पर इन्हें एतराज था सरकार ने बिना किसी शर्त के उसे वापस लिया। ये सरकार की सोच को दिखता है कि पूरी तरीके से किसानों की भावना के साथ हमारी सरकार काम करने का प्रयास कर रही है। ऐसी में जब सरकार ने बातचीत का रास्ता खुलकर रखा है तो मुझे लगता है कि पहले बातचीत होनी चाहिए। सरकार बातचीत के लिए तैयार है।’
राकेश टिकैत का भी आया बयान
किसानों के ‘दिल्ली चलो’ मार्च पर किसान नेता राकेश टिकैत का भी बयान आया है। राकेश टिकैत ने कहा- ‘गौतमबुद्धनगर में नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना तीन प्राधिकरण हैं, जहां किसानों की भूमि अधिग्रहण की गई है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों से किसानों को 64% अधिक मुआवजा देने को कहा है, लेकिन सरकार नहीं कर रही। किसानों को 10% जमीन देने का भी वादा किया गया था, लेकिन सभी किसानों को वह जमीन नहीं दी जा रही है।’
क्या हैं किसानों की मांगें?
संयुक्त किसान मोर्चा के नेता डॉ. रुपेश वर्मा ने दावा किया कि मोर्चा अबकी बार किसानों की मांगों को हर हाल में पूरी करवा कर वापस लौटेगा। उन्होंने बताया कि किसान अधिगृहित जमीन के एवज में मिलने वाले सात प्रतिशत और पांच प्रतिशत भूखंड के बदले 10 प्रतिशत भूखंड आवंटन की मांग कर रहे हैं। उनकी मांगों में नये भूमि अधिग्रहण कानून के सभी लाभों को लागू करना भी शामिल है। उन्होंने कहा कि 10 फीसदी भूखंड आवंटन का मसला वर्षों से लंबित है।
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