Bihar News: बिहार सरकार द्वारा कदम उठाये जाने के बावजूद बाल विवाह के मामले में प्रदेश शीर्ष पांच राज्यों में से एक बना हुआ है। ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस’ (जेआरसीए) नाम के गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ने यह जानकारी दी।
उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल करने वाले एनजीओ के भागीदारों ने बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया था। शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया था कि ‘पर्सनल लॉ’, बाल विवाह निषेध अधिनियम (पीसीएमए) में किसी तरह की कोई रुकावट नहीं पैदा कर सकते हैं।
जेआरसीए के संयोजक रविकांत ने शनिवार को यहां संवाददाताओं से कहा, “अलायंस 2030 तक इस जघन्य अपराध को खत्म करने के अपने सामूहिक प्रयास में राज्य सरकारों की सहायता करने के लिए प्रतिबद्ध है। मौजूदा कदमों के बावजूद बिहार अभी तक बाल विवाह के मामले में शीर्ष पांच राज्यों में शुमार है। हम बाल विवाह को समाप्त करने के राज्य सरकार के प्रयास में दृढ़ता से उसके साथ खड़े हैं, जो बच्चों को उनके अधिकारों और स्वतंत्रता से वंचित करता है।”
‘एसोसिएशन फॉर वॉलंटरी एक्शन’ और ‘प्रयास जेएसी सोसाइटी’ सहित जेआरसीए के भागीदारों ने उच्चतम न्यायालय के हालिया दिशा-निर्देशों के मद्देनजर बाल विवाह को प्रभावी ढंग से खत्म करने की रणनीति बनाने के लिए यहां एक बैठक की।
उच्चतम न्यायालय ने 18 अक्टूबर 2024 को फैसला सुनाया था कि पर्सनल लॉ, बाल विवाह निषेध अधिनियम में किसी तरह की कोई रुकावट नहीं पैदा कर सकते हैं।।
शीर्ष अदालत ने अलायंस बनाम भारत सरकार मामले का हवाला देते हुए बाल विवाह की समस्या को हल करने के लिए यौन शिक्षा, बाल सशक्तिकरण और सामुदायिक भागीदारी को शामिल करते हुए एक समग्र रणनीति के महत्व पर जोर दिया।
रविकांत ने कहा, “जेआरसीए द्वारा समर्थित यह अभियान ‘पिकेट’ रणनीति पर सक्रिय रूप से काम कर रहा है। यह रणनीति उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप तैयार की गयी है। ‘पिकेट’ रणनीति का अर्थ है नीति, संस्थान, सहयोग या अभिसरण, ज्ञान, पारिस्थितिकी तंत्र और प्रौद्योगिकी। इस व्यापक दृष्टिकोण के माध्यम से पिछले वर्ष देश भर में 120,000 से अधिक बाल विवाह रोके गए।”