13 दिसंबर 2001, यही वो तारीख थी जब आतंक संसद की दहलीज तक जा पहुंचा था। यूं तो संसद में सफेद एंबेसडर कारों के आने-जाने पर कोई गौर नहीं करता लेकिन उस दिन एक कार ने कोहराम मचा दिया था। लोकतंत्र के मंदिर को गोलियों से छलनी करने पहुंचे जैश-ए-मोहम्मद के पांच आतंकवादियों ने 45 मिनट तक जो किया वो 23 साल बाद याद कर रौंगटे खड़े हो जाते हैं।
ऐसे हुआ था संसद पर हमला
सुबह के 11 बजकर 28 मिनट (संसद भवन)- संसद के शीतकालीन सत्र की सरगर्मी तेज थी। विपक्ष के जबरदस्त हंगामें के बाद दोनों सदनों की कार्यवाही को स्थगित कर दिया गया था। संसद स्थगित होते ही तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी लोकसभा से निकलकर अपने-अपने सरकारी आवास के लिये कूच कर चुके थे।
सब कुछ आम था, आराम से था
तत्कालीन गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी अपने कई करीबी मंत्रियों और सांसदों के साथ लोकसभा में ही मौजूद थे। हमेशा की तरह लोकसभा के अंदर मीडिया का भी पूरा जमवाड़ा था। सदन स्थगित होने के बाद कुछ सांसद बाहर निकलकर गुनगुनी धूप का मजा ले रहे थे।
11 बजकर 29 मिनट (संसद का गेट नंबर 11)
उपराष्ट्रपति कृष्णकांत के काफिले में तैनात सुरक्षाकर्मी अब उनके सदन के बाहर आने का इंजार कर रहे थे। ठीक उसी समय एक सफेद एंबेसडर कार उपराष्ट्रपति के काफिले की तरफ तेजी से आती हुई दिखाई देती है। इस कार की रफ्तार संसद के अंदर आने वाली कारों की तय रफ्तार से कहीं तेज थी। अभी कोई कुछ समझ ही पाता कि उस कार के पीछे लोकसभा सुरक्षाकर्मचारी जगदीश यादव कार के पीछे भागते हुए नजर आये।
सुरक्षाकर्मचारी जगदीश यादव कार के पीछे
वह लगातार उस कार को रुकने का इशारा कर रहे थे। जगदीश यादव को कार के पीछे यूं बेतहाशा भागते देख उप राष्ट्रपति के सुरक्षा में तैनात एएसआई राव, नामक चंद और श्याम सिंह भी उस कार को रोकने के लिये उसकी तरफ झपटे। इन सुरक्षाकर्मियों को अपनी ओर आते देख कार का चालक फौरन कार को गेट नंबर 1 की तरफ मोड़ देता है जहां उप राष्ट्रपति की कार खड़ी थी। तेज रफ्तार और मोड़ के चलते कार चालक कार पर से नियंत्रण खो देता है और कार सीधे उप राष्ट्रपति की कार से जा टकराती है।
सुबह 11 बजकर 30 मिनट (संसद का गेट नंबर 1)
इस टक्कर के बाद कोई कुछ समझ पाता कि उस कार के चारों दरवाजे एक साथ खुलते हैं और गाड़ी में बैठे पांच आतंकवादी पलक झपकते ही बाहर निकलते हैं और अंधाधूंध फायरिंग शुरु कर देते हैं। पांचों आतंकवादी एके-47 से लैस थे और उनके पीठ पर एक-एक बैग था। यह पहली बार था जब आतंकी लोकतंत्र की दहलीज पार कर अंदर आ गये थे।
लोकतंत्र के मंदिर यानी कि संसद पर हमला
संसद भवन गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा था। आतंकवादियों ने अपना सबसे पहला निशाना उन चार सुरक्षाकर्मियों को बनाया जो उनकी कार रोकने की कोशिश कर रहे थे। इसके बावजूद भी संसद में मौजूद बाकी लोगों को इस हमले के बारे में जानकारी नहीं थी। गोलियों की आवाज को अंदर मौजूद मंत्री और सांसद पटाखों की आवाज समझ रहे थे। किसी ने रहमोगुमान में भी नहीं सोचा था कि संसद पर आतंकी हमला हुआ है। इसी बीच एक जोरदार धमाका हुआ जो यह ऐलान कर चुका था कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर यानी कि संसद पर हमला हो चुका है।
11बजकर 40 मिनट (संसद का गेट नंबर 1)
अंधाधूंध फयारिंग के बीच एक आतंकवादी दौड़ता हुआ संसद भवन के गेट नंबर 1 की तरफ जाता है। उसका इरादा था कि वह किसी भी तरह संसद के गलियारे में घुस जाये और वहां मौजूद सांसदों को बंधक बना ले या फिर उन्हें नुकसान पहुंचा दे। इससे पहले वह अपने नापाक मंसूबों में कामयाब होता सुरक्षाकर्मियों ने उसे मार गिराया। गेट नंबर 1 पर ही उस फीदाइनी ने ब्लास्ट कर दरवाजा तोड़ने की सोची थी। पहला आतंकी गिर चुका था मगर वह अभी भी जिंदा था। सुरक्षाकर्मियों ने उसे पूरी तरह से निशाने पर ले रखा था मगर उसके पास जाने को वो अभी भी सोच रहे थे क्योंकि डर यह था वो कि कहीं वह खुद को उड़ा ना दे और हुआ भी ऐसा ही, जैसे ही उस घायल आतंकी को यह लगा कि वह चारों तरफ से घिर चुका है उसने रिमोट की बटन दबा दी और खुद को उड़ा दिया।
सुबह 11 बजकर 45 मिनट (संसद भवन का अन्य हिस्सा)
एक आतंकी मर चुका था मगर बाकी के चार आतंकी संसद भवन के अलग-अलग हिस्सों में घूम-घूम कर ताबड़तोड़ फायरिंग कर रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो कि वह घंटों मुकाबला करने की तैयारी के साथ आये थे। उनके पास गोलियों और हैंड ग्रेनेड का पूरा जखीरा था जिसे वह अपने शरीर में बांधकर और अपने पीछे रखे बैग में रख कर लाये थे। अबतक सारा माजरा साफ कर चुका था।
लाइव ऑपरेशन
खुद को बम से उड़ाने वाले आतंकी ने इस बात का एहसास दिला दिया था कि वह किस इरादे से अंदर आये हैं। इस हमले के मास्टर माइंड अफजल गुरू (जिसे फांसी हो चुकी है) ने आतंकियों को आदेश दिया था कि रास्ते में जो भी मिले उसे जान से मार दो और फिर संसद के अंदर जाकर सांसदों पर हमला करो। इसी बीच इस हमले की सूचना सेना और एनएसजी कमांडो की मिल चुकी थी और आतंकियों से निपटने में माहिर दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने मोर्चा संभाल लिया था। मगर यह लाइव ऑपरेशन अब भी जारी था। मीडिया के जरिये इस हमले की खबर देश और विदेश में फैल चुकी थी।
अपने एक साथी के मारे जाने की खबर बाकी बचे आतंकियों को लग चुकी थी। लिहाजा अब वह और भी अटैकिंग हो गये थे। मगर इसी बीच संसद भवन के गेट नंबर 5 से एक खुशखबरी मिली। वह खुशखबरी यह थी कि सुरक्षाकर्मियों की गोली से एक और आतंकवादी ढेर हो गया है। आतंकवादी अब चारों तरफ से घिर चुके थे और सुरक्षाकर्मियों ने पूरी तरह से मुकाबले की तैयारी कर ली थी।
पूरा ऑप्रेशन 45 मिनट चला
दोपहर के 12 बजकर 5 मिनट (संसद का गेट नंबर 9)- अब सिर्फ तीन आतंकी बचे थे और उन्हें यह पता था कि वह संसद भवन से जिंदा वापस नहीं लौटेंगे इसलिये उन्होंने संसद के अंदर घुसने की एक आखिरी कोशिश की। इस कोशिश के तहत वह गोलियां बरसाते हुए संसद भवन के गेट नंबर 9 की तरफ भागे। मगर मुस्तैद जवानों ने उन्हें गेट नंबर 9 के पहले ही घेर लिया। उस समय जवानों ने भी अपने सिर पर कफन बांध लिया था और हर मुकाबले के लिये तैयार थे।
दोपहर के 12 बजकर 10 मिनट (संसद का गेट नंबर 9)
इस समय तक पूरा ऑपरेशन गेट नंबर 9 पर सिमट चुका था। बीच-बीच में आतंकी सुरक्षाकर्मियों पर हथगोले भी फेंक रहे थे। सुरक्षाकर्मियों ने थोड़ी ही देर में तीनों आतंकियों को मार गिराया। यह पूरा ऑप्रेशन 45 मिनट चला था मगर उसके बाद भी 5 घंटे तक संसद भवन से रुक-रुक कर गोलियां चलने की आवाज आ रही थी। सेना, बम निरोधक दस्ता और एनएसजी ने संसद को चारों तरफ से घेर लिया था। संसद अब भी सुरक्षित नहीं था क्योंकि जगह जगह ग्रेनेड गिरे हुए थे और वह थोड़ी थोडी देर में ब्लास्ट कर रहे थे। कुछ घंटों में बम निरोधक दस्ते ने बम को निष्क्रिय कर दिया, संसद अब पूरी तरह सुरक्षित था।
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