Year Ender 2024: 25 साल बाद नवीन पटनायक की बादशाहत हुई खत्म, सत्ता परिवर्तन के लिए ओडिशा ने किया मतदान

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वर्ष 2024 में ओडिशा के राजनीतिक परिदृश्य में बड़े बदलाव दिखे जब अजेय समझी जाने वाली नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली सरकार का लगभग 25 साल का शासन समाप्त हो गया और राज्य में पहली बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सत्ता में आई। यह पटनायक की पहली चुनावी हार थी। ओडिश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एकसाथ हुए थे। विधानसभा चुनाव में पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल (बीजद) 2019 में जीती गई 113 सीट से घटकर 51 सीट पर आ गई, बल्कि लोकसभा में भी उसका सफाया हो गया क्योंकि वह 21 में से कोई भी संसदीय सीट जीतने में विफल रही।

राज्य के पांच बार मुख्यमंत्री रहे पटनायक कांताबंजी सीट पर भाजपा के लक्ष्मण बाग से 16,000 से अधिक मतों से हार गए तथा हिन्जिली विधानसभा क्षेत्र को लगभग 4,000 मतों के मामूली अंतर से बचाने में सफल रहे।भाजपा ने 147 सदस्यीय विधानसभा में 78 सीट जीती, जबकि कांग्रेस को 14 सीट पर जीत मिली। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने एक सीट जीती, जबकि तीन निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी जीत दर्ज की। भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित अपने शीर्ष नेतृत्व के साथ चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंककर इतिहास रच दिया, हालांकि उसे बीजद के 40.22 प्रतिशत के मुकाबले 40.07 प्रतिशत वोट ही मिले।

भाजपा ने ‘उड़िया अस्मिता’ के सहारे सत्ता हासिल की और बीजद को एक ‘‘बाहरी’’ व्यक्ति वी.के. पांडियन द्वारा संचालित पार्टी के रूप में चित्रित किया। वी.के. पांडियन, पटनायक के करीबी तमिल आईएएस (भारतीय प्रशासनिक सेवा) अधिकारी थे, जिन्होंने नौकरशाही छोड़ दी थी और चुनावी पराजय के बाद राजनीति भी छोड़ दी थी। भाजपा ने सरकार चलाने की जिम्मेदारी अपेक्षाकृत कम चर्चित चेहरे मोहन चरण माझी को देकर सबको चौंका दिया।

मुख्यमंत्री का पदभार संभालने के बाद क्योंझर के आदिवासी नेता माझी ने अपनी पहली कैबिनेट बैठक में पुरी के प्रतिष्ठित जगन्नाथ मंदिर के सभी चार द्वारों को फिर से खोलने का फैसला किया, जिसका चुनाव से पहले भाजपा ने वादा किया था। उन्होंने मंदिर के खजाने या रत्न भंडार के दरवाजे भी 46 साल बाद खोलने के आदेश दिए ताकि उन्हें सूचीबद्ध किया जा सके और मरम्मत की जा सके। साथ ही मंदिर की सुरक्षा, संरक्षा और सौंदर्यीकरण के लिए 500 करोड़ रुपये की राशि को मंजूरी दी।

नयी सरकार ने धान के लिए 3,100 रुपये प्रति क्विंटल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को भी मंजूरी दी और महिलाओं के लिए वित्तीय सहायता योजना ‘सुभद्रा योजना’ शुरू की, जिसके तहत 21-60 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं को पांच वर्षों में 50,000 रुपये दिए जाएंगे। दूसरी ओर, बीजद के भीतर भारी असंतोष के बीच पटनायक ने विपक्ष के नेता का पदभार संभाला। बीजद नेताओं के भाजपा में शामिल होने का चुनाव-पूर्व चलन जारी रहा, जिसमें दो राज्यसभा सदस्य, ममता मोहंता और सुजीत कुमार सत्तारूढ़ खेमे में शामिल हो गए और उपचुनावों में फिर से निर्वाचित हुए। इससे बीजद की राज्यसभा की संख्या घटकर सात रह गई और उच्च सदन में भाजपा की ताकत बढ़ गई।

आलोचनाओं के बीच पटनायक ने पांडियन का बचाव किया, उनके ‘‘उत्कृष्ट कार्य’’ की सराहना की तथा हार के लिए भाजपा के ‘‘नकारात्मक चुनाव प्रचार अभियान’’ को जिम्मेदार ठहराया। घटती लोकप्रियता के बीच बीजद कई मुद्दों पर सरकार को घेरने में कुछ हद तक सफल रही, जिसमें एक सैन्य अधिकारी और उसकी मंगेतर पर पुलिस द्वारा हिरासत में कथित रूप से हमला करने सहित महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा भी शामिल है। घटना 15 सितंबर को हुई जब सैन्य अधिकारी और उसकी मंगेतर भुवनेश्वर के भरतपुर थाने में ‘रोड रेज’ की घटना की शिकायत दर्ज कराने गए थे। आरोप है कि सैन्य अधिकारी की पिटाई की गई और उसकी मंगेतर को एक कोठरी में घसीटकर ले जाया गया, जहां कुछ पुरुष पुलिसकर्मियों ने उसकी पिटाई की तथा उससे छेड़छाड़ की।

घटना पर मचे हंगामे के बीच सरकार ने पांच पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया, जांच का जिम्मा अपराध शाखा को सौंप दिया और एक न्यायिक आयोग गठित किया। इस साल राज्य को कंभमपति हरि बाबू के रूप में नया राज्यपाल भी मिला, जिन्होंने रघुबर दास की जगह ली। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री दास ने अपने बेटे पर एक ऑन-ड्यूटी सरकारी अधिकारी के साथ कथित तौर पर मारपीट करने के आरोप के चलते महीनों के जनता के आक्रोश के बीच बमुश्किल 14 महीने तक पद पर रहने के बाद इस्तीफा दे दिया था। जुलाई में पुरी स्थित राजभवन में भाजपा के नेतृत्व वाली नयी सरकार ने एक बड़ी रथ यात्रा की मेजबानी की थी, जिसमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी हिस्सा लिया था। आरोप है कि राज्यपाल के बेटे ललित कुमार और उसके चार दोस्तों ने सहायक अनुभाग अधिकारी बैकुंठ प्रधान के साथ मारपीट की थी।